कश्मीरी गाइड बना देवदूत, फायरिंग होते ही बच्चों को लेकर भागा नजाकत; छत्तीसगढ़ के 11 लोगों की बचाई जान

kashmiri guide nazakat ahmad : जम्मू कश्मीर के पहलगाम में जब मंगलवार को आतंकवादी हमला हुआ तो एक कश्मीरी गाइड ने अपनी जान जोखिम में डालकर छत्तीसगढ़ के पर्यटकों के एक समूह के बच्चों की जान बचाई। 28 साल के नजाकत अहमद शाह छत्तीसगढ़ के मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले के 11 लोगों के समूह के लिए कश्मीर यात्रा के दौरान गाइड थे। इस समूह में चार दंपति और तीन बच्चे थे।

सर्दियों में छत्तीसगढ़ के गांवों और शहरों में घूम-घूमकर कश्मीरी शॉल और कपड़े बेचने वाले 28 वर्षीय शाह राज्य के मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले के उन 11 लोगों के लिए देवदूत साबित हुए जब पहलगाम के बैसरन घाटी में आतंकवादी बेगुनाह लोगों पर गोलियों की बौछार कर रहे थे। छत्तीसगढ़ के चिरमिरी शहर के निवासी अरविंद एस अग्रवाल, कुलदीप स्थापक, शिवांश जैन और हैप्पी वधावन का परिवार छुट्टियां मनाने कश्मीर गया हुआ था। इस समूह में चार दंपति और तीन बच्चों सहित कुल 11 लोग शामिल थे।

समूह 17 अप्रैल को जम्मू पहुंचा था और कश्मीर की सैर कर वह पहलगाम होकर वापस छत्तीसगढ़ लौटने वाले थे। जब वह मंगलवार को बैसरन घाटी में थे तब आतंकवादियों ने वहां हमला कर दिया और राज्य के दिनेश मिरानिया समेत 26 लोगों हत्या कर दी। अरविंद अग्रवाल और उनका समूह भी वहां था, जिसे नजाकत शाह ने वहां से निकाला। कश्मीर में गाइड के रूप में काम करने वाले शाह ने पीटीआई को फोन पर बताया कि वे सर्दियों के मौसम में अक्सर छत्तीसगढ़ आते हैं और चिरमिरी शहर तथा आसपास के गांवों में तीन महीने शॉल बेचते हैं। इस दौरान शाह की पहचान अग्रवाल और उनके साथियों से हो गई और शाह ने उन्हें कश्मीर घूमने के लिए आमंत्रित किया।

शाह ने बताया, ”वे 17 अप्रैल को जम्मू पहुंचे और मैं उन्हें जम्मू से दो वाहनों में कश्मीर लाया। मैं उन्हें श्रीनगर, गुलमर्ग, सोनमर्ग ले गया और आखिरी पड़ाव में हमने पहलगाम जाने का फैसला किया।” उन्होंने बताया, ”पहलगाम को आखिरी जगह के तौर पर तय किया गया था क्योंकि मेरा गांव पहलगाम के करीब है और मैं उनकी मेजबानी करना चाहता था, क्योंकि कश्मीरियों में मेहमान नवाजी का जुनून है।’’

kashmiri guide nazakat ahmad :  शाह ने कहा, ”हम दोपहर करीब 12 बजे बैसरन घाटी पहुंचे। मेरे पर्यटक टट्टू की सवारी और तस्वीरें खींचने में व्यस्त थे। करीब दो बजे मैंने लकी (कुलदीप) से कहा कि हमें देर हो रही है, इसलिए हमें जाना चाहिए। उसने कहा कि हम कुछ और तस्वीरें खींचने के बाद जाएंगे। जब हम बात कर रहे थे, तभी हमने गोलियों की आवाज सुनीं। पहले तो हमें लगा कि यह पटाखे फोड़ने की आवाज है। अचानक हमें एहसास हुआ कि यह गोलियों की आवाज है। वहां हजारों पर्यटक थे जो घबराकर इधर-उधर भाग रहे थे।”

उन्होंने बताया, ”मेरी पहली चिंता पर्यटक परिवारों की सुरक्षा थी। मैंने लकी के बच्चे और दूसरे बच्चे को अपने हाथ में लिया और जमीन पर लेट गया। उस इलाके में बाड़ लगी हुई थी, इसलिए भागना आसान नहीं था। मैंने बाड़ में एक छोटा सा कट देखा और परिवारों से वहां से चले जाने को कहा। परिवार ने मुझसे पहले बच्चों को बचाने को कहा। मैं वहां से दोनों बच्चों के साथ निकल गया और पहलगाम भाग गया।”

शाह ने बताया, ”मैं फिर से वापस गया क्योंकि परिवार के कुछ सदस्य पीछे रह गए थे और उन्हें पहलगाम ले आया। शुक्र है कि मैं हमारे सभी 11 मेहमानों को सुरक्षित पहलगाम ले गया।” उन्होंने बताया, “मेरे भाई (मामा के बेटे) आदिल हुसैन आतंकवादी हमले में मारे गए। मैं उनके जनाजे में शामिल नहीं हो सका क्योंकि मैंने अपने पर्यटकों को पहले सुरक्षित श्रीनगर छोड़ने का फैसला किया।” शाह ने बताया, “मैं उन्हें (कुलदीप और कुछ अन्य) कई वर्षों से जानता हूं क्योंकि पहले मैं अपने पिता के साथ चिरमिरी में शॉल बेचने जाता था।”

kashmiri guide nazakat ahmad :  नजाकत शाह की दो बेटियां हैं। उन्होंने कहा, ”मैं चाहता था कि मेरे मेहमान बच जाएं, भले ही मैं न बचूं। मैं नहीं चाहता था कि जो लोग खुशी लेकर यहां आए हैं वह मातम लेकर जाएं।” पर्यटकों में से एक अरविंद अग्रवाल ने शाह के साथ अपनी और अपनी बेटी की तस्वीरें पोस्ट की है और सोशल मीडिया पर लिखा, ”आपने अपनी जान दांव में लगाकर हमारी जान बचाई, हम नजाकत भाई का अहसान कभी नहीं चुका पाएंगे।”

एक अन्य पर्यटक स्थापक ने भी शाह के साथ अपनी और अपने परिवार की तस्वीरें साझा की है और उनकी जान बचाने के लिए शाह की सराहना की है। स्थापक ने कहा है कि वह उन्हें जीवन भर नहीं भूलेंगे। उन्होंने अपने ‘फेसबुक अकाउंट’ पर लिखा, ”मेरे भाई, आपने जिस जज्बे और बहादुरी से हमें वहां से निकाला, वो मंजर अभी भी मेरे जहन में है, चारों तरफ अफरा- तफरी, गोलियों की आवाजें, चीख- पुकार और मौत का साया था। अपनी जान को दांव पर लगाकर जो इंसानियत आपने दिखाई, वो शब्दों से परे है। मैं जिंदगी भर आपका शुक्रगुज़ार रहूंगा,ये एहसान कभी नहीं भूल सकता।”

उन्होंने लिखा, “हम तो शायद इस मुश्किल हालात से निकल आएं, लेकिन दिल में बस एक ही चिंता है-आप और आपका परिवार। आज हर न्यूज़ चैनल पर आपका नाम है, लोग तारीफ कर रहे हैं, लेकिन असली सवाल ये है अब आपकी सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन उठाएगा?” स्थापक ने लिखा है, ”लोग धर्म और जाति पर बहस करेंगे, लेकिन जिसने इंसानियत की सबसे खूबसूरत मिसाल पेश की, उस नजाकत भाई को वहां कौन संभालेगा? यही सोचकर दिल बेचैन हो जाता है। कुछ के लिए ये सिर्फ एक खबर होगी, एक वीडियो, एक क्लिक… लेकिन हमारे लिए ये जिंदगी और मौत का फासला थाऔर उस फासले को आपने अपने कंधे पर उठाकर पार किया।”

kashmiri guide nazakat ahmad :

उन्होंने लिखा है, ”मेरे बच्चे को, आपने खुद अपने गोद में उठाया, कंधे पर बैठाकर उन खतरनाक पहाड़ियों पर 14 किमी तक दौड़ते रहे। जब मुझे लगा कि अब शायद मैं नहीं बचूंगा मेरी हिम्मत जवाब दे चुकी थी, तब मैंने उस वक्त एक बात कही थी कि भाई, मेरे बच्चे को घर तक सुरक्षित पहुंचा देना…अपने उस बच्चे के साथ पिता की आखिरी उम्मीद को भी बचा लिया और सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया, अगर आप नहीं होते तो मैं ये शब्द लिखने के लिए भी जिंदा नहीं होता।” स्थापक की पत्नी चिरमिरी कस्बे में भाजपा पार्षद हैं।