‘पति सेक्स की डिमांड पत्नी से नहीं करेगा तो कहां जाएगा?’ हाईकोर्ट ने पत्नी की याचिका पर क्यों की ये टिप्पणी?

Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यौन सुख को पति-पत्नी के बीच जारी झगड़े की वजह बताते हुए एक केस खारिज कर दिया है। दरअसल, इलाहाबाद उच्च न्यायालय एक महिला की तरफ से पति के खिलाफ दर्ज केस की सुनवाई कर रहा था, जिसमें याचिकाकर्ता ने यातना, दहेज और अप्राकृतिक संबंध बनाने के आरोप लगाए थे। जानकारी के मुताबिक, दोनों की शादी साल 2015 में हुई थी। रिपोर्ट के अनुसार, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने केस खारिज करते हुए कहा कि पीड़ित के बयान और FIR की बारीकी से जांच से पता चलता है कि यदि कोई यातना या हमला किया गया है, तो वह दहेज की किसी मांग के लिए नहीं, बल्कि आवेदक क्रमांक 1 की सेक्स की इच्छाओं को ऑपोजिट पार्टी क्रमांक 3 की तरफ से इनकार किए जाने पर किया गया।

Allahabad High Court:  मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस अनीश कुमार गुप्ता ने कहा कि ‘यह जाहिर है कि विवाद पार्टियों के सेक्स को लेकर एकमत नहीं होने की वजह से है। जिसके कारण दोनों के बीच विवाद था और उस विवाद के कारण तत्काल FIR दर्ज कराई गई थी।’ रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने कहा कि अगर एक पुरुष अपनी पत्नी से और महिला अपने पति से सेक्स की मांग नहीं करेगी, तो सभ्य समाज में वह यौन इच्छाओं को पूरा करने के लिए कहां जाएंगे।

पति पर महिला ने लगाये थे गंभीर आरोप

Allahabad High Court:  बता दें, दोनों की शादी साल 2015 में हुई थी। इसके बाद पुरुष और उसके परिवार ने कथित तौर पर महिला से दहेज की मांग की। महिला के आरोप थे कि दहेज की मांग पूरी नहीं करने पर उसके साथ हिंसा की गई थी। महिला का यह भी कहना था कि पति को शराब की लत है और वह उससे अप्राकृतिक सेक्स की मांग करता है। उन्होंने आरोप लगाए थे कि पति पोर्न फिल्में देखता है और उसके सामने बगैर कपड़ों के घूमता है और हस्तमैथुन करता है। जब उसने इन बातों पर आपत्ति जताई, तो पति ने कथित तौर पर उसके साथ हिंसा की। महिला के आरोप थे कि सिंगापुर में भी पति ने उसे यातना दी थी। इसके बाद पति और उसके परिवार के खिलाफ कई धाराओं के तहत केस दर्ज हुआ था।

Allahabad High Court:

इसके बाद पति और उसका परिवार भी हाई कोर्ट पहुंचा। हाई कोर्ट का यह मानना था कि पत्नी ने पति और उसके परिवार पर यातना के अस्पष्ट आरोप लगाए थे। कोर्ट ने कहा कि किसी भी घटना में ओपोजिट पार्टी क्रमांक 3 को चोट नहीं पहुंची है। ऐसे में मामले के तथ्यों से कोर्ट की राय से किसी भी तरह से यह नहीं कहा जा सकता है कि यह धारा 498 के तहत क्रूरता का अपराध है।

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