श्रीराम मंदिर के शिलान्यास को लेकर कांग्रेसी नेताओं का दावा,श्रेय लेने के चक्कर में अपने-अपने पोस्टर में छपवा दी अलग-अलग तारीखें, अब सोशल मीडिया में हो रही किरकिरी
इसके पहले भी एक जिला अध्यक्ष शहीद भगत सिंह की तस्वीर लगा कर चंन्द्रशेखर आज़ाद को श्रद्धांजलि दी दी थी।
रायपुर। आज अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्री राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन करेंगे। मंदिर निर्माण को लेकर पूरे देश में खुशी की लहर है साथ ही इस पर जमकर राजनीति भी हो रही है ।
इसी बीच रायपुर में कांग्रेसी नेताओं ने राम मंदिर के शिलान्यास का श्रेय स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी को देते हुए हड़बड़ी में शिलान्यास की अलग-अलग तारीख बता दी है। जिसके कारण सोशल मीडिया में कांग्रेस की खूब किरकिरी हो रही है। हालांकि इनमें से एक नेता ने सही तारीख बताई है जबकि दूसरे ने वायरल फोटो के आधार पर शिलान्यास का साल ही गलत बता दिया है ।
इसे लेकर सोशल मीडिया में खूब किरकिरी हो रही है कि कांग्रेस श्रीराम मंदिर निर्माण का श्रेय लेना चाहती है जबकि उन्हें इसकी तारीख तक नहीं पता ।
बता दें कि श्रीराम मंदिर का शिलान्यास अयोध्या में तीस साल पहले राजीव गांधी सरकार की अनुमति से 9 नवंबर 1989 को किया गया. शिलान्यास में पहली ईंट दलित समुदाय से आने वाले कामेश्वर चौपाल ने रखी थी.
अयोध्या (Ayodhya) में विवादित स्थल का ताला खोलने का आदेश 1 फरवरी, 1986 को ही दे दिया गया था. जिला जज (District Judge) के आदेश के बाद लोगों ने ताला खोल भी दिया, लेकिन सवाल उठता है कि जस्टिस केएम पांडे (Justice KM Pandey) को आखिर ये फैसला क्यों लेना पड़ा. राममंदिर (Ram Temple) और बाबरी मस्जिद (Babari Masjid) का विवाद वर्षों पुराना था.
अंग्रेजों के जमाने में या यू कहें कि अंग्रेजों के पहले से इस जगह के मालिकाना हक को लेकर विवाद था. आजादी के बाद के करीब 40 साल में फैजाबाद की अदालत में एक दर्जन से ज्यादा जिला जज आए और स्थानांतरित होकर चले गए. ये मुकदमा लगभग सभी जजों के सामने आया, लेकिन किसी ने फैसला नहीं लिया. सभी ने सिर्फ तारिख लगाई और अपना कार्यकाल पूरा किया. लेकिन, केएम पांडे ने फैजाबाद (Faizabad) के जिला जज का कार्यभार संभालने के एक साल के भीतर इस पर फैसला सुना दिया.
तत्कालीन सीजेएम सीडी राय (CJM CD Rai) जिला जज पांडे के इस पर फैसला लेने के पीछे एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं.अयोध्या में जिला जज की कुर्सी संभालने के बाद केएम पांडे रामलला के दर्शन करने गए थे. दर्शन के बाद जब जज साहब वहां से निकले तो बाहर खड़े एक साधु ने रामलला के बंद दरवाजे के बारे में पूछा. साधु की बात जज साहब को परेशान करने वाली थी. साधु ने रामलला के बंद दरवाजे के लिए अदालत (Judiciary) और राजनेताओं (Politicians) को जिम्मेदार बता दिया. जज साहब के कुछ बोलने से पहले ही साधु ने जज साहब को विवादित स्थल का दरवाजा खोलने की चुनौती (Challenge) दे डाली. जिला जज पांडे को ललकारते हुए उस साधु ने कहा कि हिम्मत है तो इस मामले में फैसला सुना दो
. उस साधु की बात ने जज साहब को अंदर तक झकझोर दिया. उन्होंने तय किया कि वह जल्द इस मामले की सुनवाई पूरी करेंगे. इसके बाद जज साहब ने इस मामले की सुनवाई करीब एक महीने में पूरी कर ली और 1 फरवरी, 1986 को ताला खोलने का फैसला सुना दिया.