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चर्चा में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का ये फैसला, 8 साल के बच्चे की कस्टडी पिता को नहीं, मामा को दी, क्या है वजह

Chhattisgarh High Court : हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में 8 साल के बच्चे की कस्टडी पिता को नहीं, उसके मामा को सौंपने का फैसला सुनाया. ये फैसला फैमिली कोर्ट ने दिया था, जिसे पिता ने हाईकोर्ट में चैलेंच जिया था. हाइकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा. कोर्ट का ये फैसला चर्चा में है, जहां पिता की जगह मामा को 8 साल का बच्चा सौंप दिया. क्या है पूरा मामला पढ़िए…

फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा

Chhattisgarh High Court :  याचिकाकर्ता की पहली पत्नी रागिनी सिंह की 12 मार्च 2017 को प्रसव के बाद मृत्यु हो गई थी. इसके बाद से बच्चा अपने मामा ललित सिंह के पास ही रह रहा था. हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में 8 साल के बच्चे के पालन पोषण का अधिकार उसके मामा के पक्ष में दिया. दरअसल मां की मौत के बाद फैमिली कोर्ट ने उसके मामा को बच्चे का पालन-पोषण करने का अधिकार दिया था, जिसे पिता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखकर पिता की अपील खारिज कर दी. कारण बताया जो पिता कभी अपने बच्चे को लेने नहीं आया, उसे अब अधिकार नहीं है. जन्म से ही अपनी मां को खो चुका 8 साल का बच्चा अपने मामा के पास ही रहा और वहीं सुरक्षित महसूस करता है. उसे अब पिता को नहीं दिया जा सकता. डिवीजन बेंच ने पिता को छुट्टियों और त्योहारों पर बेटे से मिलने और वीडियो कॉल करने का अधिकार दिया है.

दूसरी तरफ बच्चे के मामा ने भी अपना पक्ष रखा और भांजे के बेहतर पालन पोषण की आवश्यकता बताई. हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों के तर्क और साक्ष्यों को देखने के बाद पाया कि पिता ने कभी बेटे को अपने पास लाने की कोशिश नहीं की. बच्चा बचपन से मामा के साथ रह रहा है और वहां सुरक्षित है. ऐसे में अब 8 साल का बच्चा अपने पिता और सौतेली मां के पास असहज महसूस करेगा. हाईकोर्ट ने तर्कों को सुनने और साक्ष्यों के आधार पर फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा. साथ ही कहा कि बच्चे का पालन-पोषण और कल्याण वर्तमान में उसके मामा के पास ही सुरक्षित है. हालांकि, कोर्ट ने अपीलकर्ता पिता को वीडियो कॉल और छुट्टियों में बेटे से मिलने का हक दिया है. कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि मुलाकात में मामा किसी तरह की रुकावट नहीं डालेंगे. इसके साथ ही जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस एके प्रसाद की डिवीजन बेंच ने पिता की अपील खारिज कर दी.