CG NGO Scam: 1000 करोड़ के एनजीओ घोटाले में पूर्व मुख्य सचिव समेत 11 अधिकारियों के खिलाफ होगी सीबीआई जांच, हाई कोर्ट ने अपना फैसला किया कंटिन्यू, पढ़िए हाई कोर्ट के फैसले के बाद अब आगे क्या होगा। यह भी जानिए, आईएएस व राज्य सेवा संवर्ग के अफसरों ने फर्जी NGO बनाकर राज्य सरकार के खजाने को कैसे चूना लगाया। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में इसे संगठित और सुनियोजित अपराध करार दिया था।
इन अफसरों की है मिलीभगतराज्य के ५ रिटायर आईएएस अधिकारी आलोक शुक्ला, विवेक ढांड, एमके राउत, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल और पीपी सोती समेत सतीश पांडेय, राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एमएल पांडेय और पंकज वर्मा।
CG NGO Scam: बिलासपुर। 1000 करोड़ के एनजीओ घोटाले में पूर्व मुख्य सचिव समेत 11 अधिकारियों के खिलाफ होगी सीबीआई जांच, हाई कोर्ट ने अपने फैसले को कंटिन्यू किया है। राज्य सेवा नि:शक्तजन स्रोत संस्थान बनाकर छत्तीसगढ़ के 11 आईएएस व राज्य सेवा संवर्ग के अधिकारियों ने एक हजार करोड़ रुपये का वारा-न्यारा कर दिया है। कुंदन सिंह ने अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर के जरिए हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर पूरे मामले की सीबीआई जांच की मांग की थी। बिलासपुर हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस प्रशांत मिश्रा व जस्टिस पीपी साहू की डिवीजन बेंच ने पीआईएल को स्वीकार करते हुए सीबीआई जांच का निर्देश दिया था। हाई कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई जबलपुर ने शून्य में अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया था।
सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर के बाद आईएएस अफसरों ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। माामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर रोक लगाते हुए याचिकाकर्ताओं को वापस बिलासपुर हाई कोर्ट भेज दिया था। हाई कोर्ट को मामले की सुनवाई करने का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने दिया था।
रायपुर निवासी कुंदन सिंह ने अपने वकील देवर्षि ठाकुर के जरिए बिलासपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर कर छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्य सचिव सहित आधा दर्जन आईएएस अधिकारियों के खिलाफ फर्जी तरीके से एनजीओ बनाकर एक हजार करोड़ से अधिक का घोटाला करने का आरोप लगाया है। याचिकाकर्ता ने अपने आरोप के संबंध में दस्तावेज भी पेश किया है। याचिका की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने राज्य शासन के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर मामले की जांच कराने और विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था। कोर्ट के निर्देश पर तत्कालीन मुख्य सचिव अजय सिंह ने जांच कमेटी का गठन कर गड़बड़ियों की जांच करने और रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया था।
तत्कालीन चीफ सिकरेट्री ने फर्जीवाड़े की थी पुष्टि
जांच रिपोर्ट आने के बाद तत्कालीन चीफ सिकरेट्री ने डिवीजन बेंच के समक्ष रिपोर्ट पेश करते हुए फर्जीवाड़ा की पुष्टि की थी। तत्कालीन चीफ सिकरेट्री की रिपोर्ट के बाद डिवीजन बेंच ने प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए घोटाले की सीबीआई जांच कराने का निर्देश दिया था। हाई कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई जबलपुर ने अज्ञात के खिलाफ अपराध दर्ज मामले की जांच शुरू कर दी थी। इसी बीच घोटाले के आरोप में फंसे आईएएस व राज्य सेवा संवंर्ग के अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर सीबीआई जांच पर रोक की मांग की थी
प्रकरण की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर रोक दिया था। प्रकरण की सुनवाई के लिए याचिका छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट को वापस भेज दिया था। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हाई कोर्ट ने दोबारा एक हजार करोड़ रुपये के घोटाले में फंसे आईएएस व राज्य सेवा संवर्ग के अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का निर्देश दिया था। कोर्ट के निर्देश पर आईएएस अधिकारियों ने अपने वकील के जरिए डिवीजन बेंच के समक्ष जवाब पेश किया।
क्या है मामला
समाज कल्याण विभाग के अधीन राज्य स्रोत नि:शक्तजन संस्थान में गुपचुप तरीके से सरकारी धन हड़पने का खेल लंबे समय से चल रहा था। 17 जुलाई 2018 को संचालक कोष एवं लेखा विभाग ने दस्तावेजों की पड़ताल की। विशेष आडिट रिपोर्ट के अनुसार भाग दो में जो दस्तावेज सौंपे गए उसमें गड़बड़ियों की भरमार निकली। आडिट के दौरान कुल 31 प्रकार की अनियमितताएं पाई गई थी। रिपोर्ट के अनुसार प्रथम दृष्टया पांच करोड़ 67 लाख दो हजार 346 रुपये का फर्जीवाड़ा मिला था।
समाज कल्याण विभाग में एक हजार करोड़ रुपये के घोटाले में प्रदेश के सात आईएएस व पांच राज्य सेवा संवर्ग के अधिकारियों की संलिप्तता को लेकर रायपुर निवासी शासकीय कर्मचारी कुंदन सिंह ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की थी। मामले की गंभीरता को देखते हुए हाई कोर्ट ने रिट याचिका को जनहित याचिका के रूप में दायर करने का निर्देश याचिकाकर्ता को दिया था।
आला अफसरों ने बनाए फर्जी एनजीओ और किया घोटाला
याचिकाकर्ता ने प्रदेश के एक दर्जन आईएएस व राज्य सेवा संवर्ग के अधिकारियों पर फर्जी एनजीओ बनाकर केंद्र सरकार की योजना में जमकर फर्जीवाड़ा का आरोप लगाया है। आडिट के दौरान कुछ इस तरह गड़बड़ी सामने आई।
संस्थान में बिना सक्षम स्वीकृति के 24 लाख 91 हजार रुपये राशि का अग्रिम आहरण कर लिया। यह राशि तीन नवंबर 2010 से 18 जनवरी 2013 के बीच निकाली गई है।
14 लाख दो हजार 563 रुपये अग्रिम राशि के समायोजन के पहले सक्षम स्तर पर स्वीकृति नहीं ली गई।
चार करोड़ 25 लाख रुपये का राज्य स्रोत नि:शक्तजन संस्थान के अन्य खाते में स्थानांतरण का नियमानुसार अनुमोदन नहीं लिया गया है।
अग्रिम राशि के समायोजन के बिना पुन: अग्रिम राशि चार लाख रुपये स्वीकृत। इसके समायोजन के लिए वाउचर उपलब्ध नहीं पाए गए।
वित्तीय वर्ष 2014-15, 2015-16, और 2016-17 में अंतिम शेष का कैशबुक के साथ मिलान नहीं किया गया है।
बिना प्रबंध कार्यकारिणी समिति के अनुमादेन के 13 लाख 78 हजार 783 रुपये का राज्य स्रोत नि:शक्तजन संस्थान के अन्य खातों में राशि स्थानांतरण कर दी गई।
ऐसे सामने आया फर्जीवाड़ा
रायपुर के कुशालपुर निवासी कुंदन सिंह ठाकुर ने याचिका में बताया है कि खुद उसे एक शासकीय अस्पताल राज्य स्त्रोत नि:शक्त जन संस्थान में कार्यरत बताते हुए वेतन देने की जानकारी पहले मिली। इसके बाद उन्होंने आरटीआई के तहत जानकारी मांगी तब पता चला कि नया रायपुर स्थित इस कथित अस्पताल को एक एनजीओ चला रहा है। जिसमें कागजों में करोड़ों की मशीनें खरीदी गईं हैं। इनके रखरखाव में भी करोड़ों का खर्च आना बताया गया अस्पताल से लेकर कर्मचारियों का वेतन और मशीनों की खरीदी सब-कुछ अफसरों ने कागज में दिखाए। मौके पर कुछ भी नहीं है।
स्पेशल आडिट में मिली गड़बड़ियां
17 जुलाई 2018 को संचालक कोष एवं लेखा विभाग ने दस्तावेजों की पड़ताल की। विशेष ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार भाग दो में जो दस्तावेज सौंपे गए उसमें गड़बड़ियों की भरमार निकली। आडिट के दौरान कुल 31 प्रकार की अनियमितताएं पाई गई थी। रिपोर्ट के अनुसार प्रथम दृष्टया पांच करोड़ 67 लाख दो हजार 346 रुपये का फर्जीवाड़ा मिला था।
सच्चाई का पता लगाने सीबीआई द्वारा निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच की आवश्यकता
डिविज़न बेंच ने कहा कि वर्तमान मामले में, जैसा कि प्रतिवादी सीबीआई के वकील ने प्रस्तुत किया है कि इस न्यायालय के पहले के आदेश के अनुसार, एफआईआर संख्या RC2222020A0001 PS SPE/CBI/AC-IV/भोपाल दिनांक 5.2.2020 पहले से ही पंजीकृत है, हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में इसे रोक कर रखा गया है। इसका अर्थ है कि, एफआईआर पहले से ही पंजीकृत है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस न्यायालय के 30.1.2020 के पहले के आदेश को केवल इस आधार पर रद्द कर दिया है कि निजी प्रतिवादियों को नोटिस नहीं दिया गया था और उन्हें सुने बिना आदेश पारित किया गया है। अब नोटिस के बाद प्रतिवादी उपस्थित हुए और उन्होंने इस बात पर विवाद नहीं किया कि वे प्रबंध समिति के सदस्य भी थे। हालाँकि, कार्यवाही में प्रस्तुत मुख्य सचिव की रिपोर्ट अडिग है। इसलिए, ऊपर उल्लिखित निर्णयों और ऊपर चर्चा किए गए तथ्यों में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून और की गई टिप्पणियों पर विचार करने के बाद, हमारा मानना है कि इस मामले में सच्चाई का पता लगाने के लिए सीबीआई द्वारा निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच की आवश्यकता है।
15 दिनों के भीतर सीबीआई मूल दस्तावेज करेगा जब्त
जस्टिस पीपी साहू और जस्टिस संजय कुमार अग्रवाल की डिविज़न बेंच ने कहा कि सीबीआई 5.2.2020 को पी.एस. एसपीई/सीबीआई/एसी-IV/भोपाल में एफआईआर संख्या RC2222020A0001 के साथ आगे कार्यवाही करेगी।
यदि एफआईआर दर्ज नहीं की गई है तो सीबीआई को एफआईआर दर्ज होने की तारीख से 15 दिनों के भीतर राज्य भर में संबंधित विभाग, संगठन और कार्यालयों से प्रासंगिक मूल रिकॉर्ड जब्त करना होगा। सीबीआई निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच शीघ्र पूरी करने के लिए हर संभव प्रयास करेगी।
इन अफसरों की है मिलीभगत
राज्य के ५ रिटायर आईएएस अधिकारी आलोक शुक्ला, विवेक ढांड, एमके राउत, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल और पीपी सोती समेत सतीश पांडेय, राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एमएल पांडेय और पंकज वर्मा।
Mk राउत छत्तीसगढ़ के तेजतर्रार आईएएस रहे हैं। वे रायपुर व बिलासपुर के कलेक्टर के अलावा कई महत्वपूर्ण विभागों के सचिव रह चुके हैं। वे अतिरिक्त मु य सचिव के पद से रिटायर हुए थे। मूलत: ओडिशा के राउत 1984 बैच के आईएएस थे। विवेक ढांड 1981 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। वह छत्तीसगढ़ के मूल निवासी हैं। ढांड 1 मार्च 2014 को राज्य के मुख्य सचिव बने थे। उनके नाम सबसे लंबे समय तक मुख्य सचिव बने रहने का रेकॉर्ड है। वह 3 साल 7 महीने से ज्यादा समय तक राज्य के मु य सचिव रहे।
विवेक ढांड भूपेश बघेल की सरकार में नवाचार आयोग के अध्यक्ष पद पर काम कर चुके हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार जाने के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
याचिकाकर्ता कुंदन सिंह ने बताया संविदा नियुक्ति के नाम पर कर्मचारियों का पैसा आहरण करते थे और बड़ी रकम एनजीओ के माध्यम से हेरफेर करने का कार्य अंजाम दे रहे थे। मेरे द्वारा याचिका लगाने पर मुझे नौकरी से निकाल दिया गया। लेकिन 23 सितंबर को हाईकोर्ट ने फैसले सुनाया तो मुझे फिर से नौकरी में बुलाया गया। हाई कोर्ट ने फैसला सुनाए जाने के उपरांत आज या कल में हाईकोर्ट के वेब साइड में अपलोड हो जाएगा। तभी मैं विस्तार से कोर्ट के फैसले को लेकर मीडिया को अवगत कराउंगा।
बता दें कि बीते 4 महीने पहले फर्जी NGO बनाकर सीएसआर फंड से करोड़ों का ठेका दिलाने के नाम पर 15 राज्यों में 150 करोड़ की ठगी करने वाले गिरोह के मास्टरमाइंड रत्नाकर उपाध्याय और संस्था की डायरेक्टर अनिता उपाध्याय को जशपुर पुलिस ने दिल्ली से गिरतार किया था। आरोपियों ने दिल्ली में राष्ट्रीय ग्रामीण साक्षरता मिशन नाम से एक फर्जी एनजीओ रजिस्टर कराया था। इसके जरिए वे कई राज्यों में कारोबारियों और सप्लायर्स को झांसा देते थे कि उनकी संस्था को सरकार से csr फंड मिल रहा है, जिससे गरीब बच्चों के लिए किताबें, ड्रेस, स्वेटर, बैग और जूते की सप्लाई के लिए ठेका दिया जाएगा। झांसे में आकर कारोबारी आरोपियों को सुरक्षा राशि के तौर पर 25 लाख, प्रोसेसिंग फीस और कमीशन के नाम पर 10 लाख रुपए तक की रकम दे देते थे
