Bilaspur High Court : बिलासपुरः छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने 39 साल पहले 100 रुपये रिश्वत लेने के मामले में एक बिल सहायक की अपील स्वीकार करते हुए उसे सभी आरोपों से बरी कर दिया है। अपीलार्थी को भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम की धाराओं के तहत रायपुर की निचली अदालत ने नौ दिसंबर 2004 को एक साल की कैद की सजा सुनायी थी और उसपर एक हजार रुपए जुर्माना लगाया था। हाई कोर्ट में जस्टिस बिभू दत्त गुरु की एकल पीठ ने सुनवाई के बाद नौ सितंबर, 2025 को आरोपी को बरी कर दिया।
कोर्ट ने सभी आरोपों से किया बरी
Bilaspur High Court : हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि साक्ष्य, चाहे मौखिक हो, दस्तावेजी हो, या परिस्थितिजन्य हो, रिश्वतखोरी के कथित अपराध के आवश्यक तत्वों को स्थापित करने में अभियोजन पक्ष विफल रहा। इसलिए, निचली अदालत द्वारा दर्ज दोषसिद्धि टिकने योग्य नहीं है। हाई कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए अपीलार्थी की दोषसिद्धि और दण्डादेश को निरस्त कर दिया तथा उसे सभी आरोपों से बरी कर दिया है।
जानें पूरा मामला
अभियोजन के अनुसार, 24 अक्टूबर 1986 को अपीलकर्ता जागेश्वर प्रसाद अवधिया रायपुर में एमपीएसआरटीसी की संभागीय कार्यशाला में बिल सहायक था। उस समय अवधिया ने शिकायतकर्ता अशोक कुमार वर्मा से उसकी 1981 एवं 1985 के बीच की सेवा अवधि के दौरान बकाया बिल के भुगतान के संबंध में कथित तौर पर 100 रुपये की रिश्वत मांगी। वर्मा ने लोकायुक्त के समक्ष इसकी शिकायत की। बाद में कथित तौर पर वर्मा से 100 रूपए रिश्वत लेते हुए अवधिया को रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया गया।
निचली अदालत ने ठहराया था दोषी
Bilaspur High Court : अभियोजन पक्ष ने जांच पूरी करने के बाद विशेष न्यायालय के समक्ष आरोप पत्र प्रस्तुत किया। अवधिया पर भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम की धाराओं तहत मुकदमा चलाया गया। अवधिया ने बेगुनाही का दावा करते हुए कहा कि उस पर झूठे आरोप लगाये गए हैं। अधीनस्थ अदालत ने अभिलेख पर उपलब्ध मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य का मूल्यांकन करने के बाद अपीलकर्ता अवधिया को उपरोक्त अपराध के लिए दोषी ठहराया और एक साल की कैद की सजा सुनायी एवं उसपर एक हजार रुपये का जुर्माना लगाया। दोषसिद्धि के निर्णय और सजा के आदेश को अवधिया ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी। अपीलकर्ता की तरफ से अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल को इस मामले में झूठा फंसाया गया है।
कोर्ट में दी ये दलील
अधिवक्ता ने तर्क दिया कि वर्मा के साक्ष्य के अनुसार, जब उन्होंने अपीलकर्ता से बकाया राशि का अनुरोध किया, तो उसने स्पष्ट रूप से कहा था कि बकाया राशि उच्च अधिकारी से अनुमोदन प्राप्त होने के बाद ही जारी की जाएगी। अधिवक्ता के अनुसार यह भी कहा गया कि शिकायतकर्ता ने 24 अक्टूबर 1986 को अनुरोध किया था, जबकि बकाया राशि तैयार करने और अनुमोदन के आदेश का अनुरोध उच्च अधिकारी से 19 नवंबर 1986 को किया गया। इससे यह स्पष्ट है कि अपीलकर्ता अनुरोध की तिथि पर राशि जारी करने के लिए सक्षम नहीं था। अधिवक्ता ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष ने अवैध रिश्वत की मांग को साबित करने के लिए कोई मौखिक या दस्तावेज़ी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है।
न्यायमूर्ति गुरु ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद नौ सितंबर 2025 को अपने निर्णय में उच्चतम न्यायालय के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष अवैध रिश्वत की मांग और स्वीकृति को साबित करने में विफल रहा इसलिए अपीलकर्ता के विरुद्ध आरोप सिद्ध नहीं होते। इस फैसले को लेकर अवधिया ने संवाददाताओं से कहा है, ‘‘’न्याय में देरी होना मतलब न्याय नहीं मिलना है। मैं आगे और नहीं लड़ सकता, सरकार से दरख्वास्त करता हूं कि मेरी रुकी हुई पेंशन शुरू कर दे।